दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर आरपीएफ़ के जवान और रेलवे के अधिकारी मुस्तैद नज़र आते हैं.
यात्रियों की सुविधा के लिए टिकट काउंटरों की संख्या बढ़ा दी गई है और बाहर ठहरने के लिए बड़ा पंडाल लगाया गया है.
लेकिन त्योहार के मौसम में स्टेशन पर उमड़ रही भीड़ के लिए ये इंतज़ाम भी नाकाफ़ी नज़र आते हैं.
दिवाली और छठ की छुट्टियों पर पश्चिम बंगाल में अपने घर जा रहीं शैली आचार्य और उनकी बहन पंडाल में बेहाल बैठी हैं.
शैली की निर्धारित ट्रेन रविवार सुबह जानी थी, लेकिन ये ट्रेन रद्द हो गई. अब उन्होंने मंगलवार सुबह जाने वाली ट्रेन में आरक्षण करवाया है. दो दिन उन्हें स्टेशन पर ही गुज़ारने होंगे.
शैली कहती हैं, "ट्रेन रद्द होने की वजह से हमारा पूरा कार्यक्रम बर्बाद हो गया है. अब दिवाली के दिन घर पहुंचेंगे, अब त्योहार मनाने लायक ऊर्जा ही नहीं बचेगी."
शैली की छोटी बहन कहती हैं, “हम ट्रेन में खाने के लिए घर से खाना बनाकर लाए थे. अब स्टेशन पर दो दिन ज़्यादा रुकना पड़ रहा है. ख़ाना ख़रीदना पड़ रहा है, उसका ख़र्च बढ़ गया है."
वे कहती हैं, "टॉयलेट जाने के लिए भी पैसा देना पड़ रहा है. इतना सामान लेकर हम वापस नोएडा जाते तो और अधिक परेशानी और ख़र्चा होता."
शैली के भाई ने उनके लिए दोगुनी क़ीमत पर एक एजेंट से टिकट ख़रीदी थी ताकि वो समय पर घर पहुंच सके. अब वो स्टेशन पर फंसी हैं.
बहुत से लोगों का परिवार के साथ मिलकर त्योहार मनाने का उत्साह अब किसी भी तरह से घर तक पहुंच जाने की जद्दोजहद में बदल गया है.
अपनी नवजात बेटी, पत्नी और मां के साथ यात्रा कर रहे रूपेश कुमार सिंह ने दो महीने पहले ही रिज़र्व टिकट ले लिया था.
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के लिए यात्रा कर रहे रूपेश की ट्रेन आठ घंटे लेट है. वो पंडाल में बैठे अपनी नवजात बच्ची को बोतल से दूध पिलाते हुए कहते हैं, "अगर हमें ट्रेन के लेट होने के बारे में पता होता तो घर पर ही रहते, बच्ची छोटी है, बहुत परेशान हो रही है."
कई लोग हैं जिन्हें टिकट नहीं मिल पाया. बहुत से लोग, लंबी दूरी की यात्राएं बसों से करने के लिए मजबूर हैं.
बस टिकट बुकिंग काउंटरों पर ऐसे लोगों की भीड़ है जिनके वेटिंग टिकट क्लियर नहीं हुए. यहां टिकटों के दाम लगभग दोगुने हैं.
1800 रुपये में गोरखपुर का टिकट ख़रीदने वाले एक युवक का कहना है, "ट्रेन का सफ़र आसान होता है, लेकिन अब मजबूरी में बस से जाना पड़ रहा है. दोगुना किराया देकर टिकट तो ले लिया है लेकिन ये नहीं पता कि बस कब तक आएगी."
टिकटों की क़ीमतें मांग के अनुसार बढ़ रही हैं. कुछ लोगों के लिए महंगे दाम चुकाना मुश्किल नहीं है.
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