कृषि क्रांति के नायक भगवान परशुराम:- रामरतन प्रसाद सिंह "रत्नाकर"
- मोकामा में लगता है विशेष मेला
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया)
भगवान विष्णु के मानव योनि में प्रथम अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। भगवान परशुराम में ब्रह्मा का सृजन शक्ति, भगवान विष्णु का पालन करने की क्षमता और शिव के संघार करने की शक्ति विद्यमान है। तीन शक्ति का पुंज भगवान परशुराम को त्रिबंत भी माना जाता है।
भारतीय संस्कृति कृषक संस्कृति है। इस संस्कृति में तीन राम प्रातः स्मरणीय है। आदि राम, परशुराम, दशरथ पुत्र श्री राम और श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम ।
भगवान परशुराम भृगु वंश के थे। वैदिक काल में भृगु वंश एक महाप्रचंड शक्ति थी। यह काल आर्य जीवन का संक्रांति काल था। इस कालखंड में नायक के रूप में देवयानी, च्यवन, सत्य वर्ती, रेणुका, शुक्राचार्य जमदग्नि, सुन सेप ,परशुराम, मारकंडे महामहा प्रतापी ही व्यक्ति थे। भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था।
भारतीय संस्कृति में गंगा, जमना पवित्र नदी है तो सरस्वती नदी को स्वर और ज्ञान की देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है । आर्य जाति के उषाकाल में सरस्वती नदी के विस्तारित क्षेत्र में भरत, भृगु, पूर्व आदि आर्य जाति के लोग निवास कर रहे थे। इस नदी के तट पर भी भृगु बांसिए जमदग्नि ऋषि का विस्तारित आश्रम था। उस आश्रम में 14 ढंग के अन्न की खेती हो रही थी ।
नदी के तट पर विश्वामित्र आर्य और दस्युओ के भेद का विवेचन कर रहे थे। इधर वशिष्ठ मुनि आर्यों की सनातन शुद्धि और विद्या के प्रतिनिधि थे। तट पर गौतम , अंगिरा और कण्व ऋषि के आश्रम से वैदिक ऋचा की ध्वनि आर्य जीवन की अभिलाषा संस्कार और भाव व्यवहार के उत्कृष्ट ध्वनि आर्य सबके आत्मा का शब्द व्यक्त कर रहे थे।
दूर-दूर के आर्य सरस्वती तट पर अवस्थित आश्रम में कृषि, आयुर्वेद, दर्शन का ज्ञान प्राप्त करने पधारा करते थे। इस कारण सरस्वती को ज्ञान की देवी लोग मानते आ रहे हैं।
भारतीय संस्कृति कृषि संस्कृति है और आर्य चाहे जिस भी कुल के हो अन्न को भोज्य पदार्थ मानते आ रहे हैं। भगवान परशुराम माता रेणुका और पिता जमदग्नि के चार पुत्रों में सबसे छोटे थे। बड़े पुत्र बसु थे। बसु वंशगर का राजा हुए और उन्होंने वसुमति को अपना राजनगर बनाया। वर्तमान के राजगृह का प्रथम नाम वसुमति ही है।
मथुरा से नर्मदा के बीच अनुदेश था। इस देश का राजा हैहय कुल के सहस्त्रार्जुन जो कार्तवीर नाम से प्रसिद्ध था। वह जितना शक्ति संपन्न था उससे अधिक अहंकारी था। यह जानने के बाद की सरस्वती नदी के तट पर एक गृहस्थ तपोनिष्ट ब्राह्मण जमदग्नि के प्रताप इस कदर का है कि उनसे मिलने कृषक तपस्वी एवं ज्ञानी लोग जाते रहते हैं। कार्तवीर राजा को यह मालूम हुआ कि आश्रम के बड़े भूभाग पर कई दुर्लभ अन्न प्रजाति है। एक कामधेनु गाय है। जिसका दूध अमृत के समान है। जमदग्नि सतोगुणी गृहस्थ सदा तप और सेवा में लगकर यह धर्म का पालन करते थे। जलन के शिकार अहंकारी राजा सैनिक एवं कई ढंग के पशु के साथ सरस्वती नदी के तट पर गुरु वशिष्ठ का आश्रम जला दिया। उनके पुत्रों के साथ मारपीट किया। गाय को अपने साथ ले गया पूरे ब्रह्मर्व को बर्बाद कर दिया।
सतोगुणी जमदग्नि यज्ञशाला में वैदिक विधान के तहत अग्नि में आहुति दे रहे थे। शरीर की आभा गजब का था। ओम साधना में लीन थे। पास के पर्णकुटीर में रेणुका भोजन व्यवस्था में लगी थी। धेनु गाय पास बंधी थी। पास दूर दर तक अन्न से भरा पौधा झूम रहा था। आसपास के वृक्षों पर कई प्रकार के चिड़िया चहक रही थी। परशुराम चारों भाई आश्रम से दूर चले गए थे। हैहय के राजा सहस्त्रार्जुन के गुप्तचरों ने जानकारी दी कि आश्रम में परशुराम चारों भाई नहीं है। हैहय जाति के हजारों सैनिकों ने आश्रम को घेर लिया। तपोनिस्ट ब्राह्मण जमदग्नि को मार दिया। रेणुका को अपमानित किया। कामधेनु गाय का हरण कर लिया। आश्रम को तहस-नहस कर दिया। अन्न से भरे खेतों को रौंद दिया। इस बीच माता रेणुका के हृदय विदारक क्रद्रण की आवाज परशुराम जी को सुनाई पड़ी। वायु वेग से चलकर परशुराम आश्रम पधारे तो देखा सतगुणी पिता के टुकड़े-टुकड़े लाश पड़े है। लाश पकड़कर चित्कार मार कर रोने लगे हाय पिता, पिता जी आप तो सतगुनी महात्मा थे। आखिर आप को किसने मारा। हाय कामधेनु कहां गई। आश्रम के अन्न, फल ,वृक्ष ,लता बताओ हमारे पिताजी को किसने मारा। बहुत देर तक विलाप करने के बाद पिताजी का खून चंदन सा माथे पर लगाकर आर्य कुल के खासकर भृगु जाति के शूरवीर के साथ आर्य के योद्धा के गर्जन से धरती कांप गई और परशुराम जी के नेतृत्व में राजनगर महिस्यमति पर जोरदार हमला करके राज परिवार एवं उनके सहयोगी क्षत्रिय सब का नरसंहार कर दिया।
क्षत्रिय के खून से कई तालाब भर गया। महिस्यामती का राजपाट भृगु वंश के राजा को दे दिया। नाराज परशुराम ने 21 बार छत्रिय जाति का नाश किया।
ऋग्वेद में आए मुनि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र के मंत्र की अन्न अन्न के मंत्र जाप से अन्न पैदा नहीं होता है। अन्न पुरुषार्थ से पैदा होता है। माना जाता है कि दोनों मुनियों के काल ही सही ऋग्वेद काल था। इस काल के महानायक भगवान परशुराम थे। उस काल तक खेतों का विभाजन नहीं हो पाया था। भगवान परशुराम ने धरती का विभाजन किया। एक व्यवस्थित आयोजन में ऋषि मुनियों की उपस्थिति में धरती का मध्य भाग कश्यप जी को प्रदान किया। पूर्व दिशा तोता को और दक्षिण दिशा ब्रह्मा को ,पश्चिम दिशा अर्ध वायु को और उत्तर दिशा समागम करने वाले उद्यदाता को प्रदान किया। बाकी जो भूभाग बचा उपस्थित सभासदों को और कोण यदु को प्रदान किया।
परशुराम जी ने सभासदों से कहा धरती हम सब की मां है। अन्न उर्जा देने का साधन है। नदी जल देती है। वायु प्राण शक्ति है। यह सब भाव मन में रखकर खेती की जाए यही भगवान भास्कर का आदेश है।
तमिल परंपरा के अनुसार केरल में प्रसिद्ध जनश्रुति के अनुसार कोकन्न की भूमि जो समुद्र में समा गई थी। उसे बाहर लाने एवं समतल करने का काम भगवान परशुराम ने किया था। कन्याकुमारी नगर बसाने का श्रेय भी परशुराम जी को जाता है। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध रामेश्वरम कन्याकुमारी और श्रीरंगम के आसपास के संत मांगते हैं यह पूरा भूभाग, नगर, गांव को परशुराम क्षेत्र माना जाता है।
विभिन्न पुराणों के अनुसार परशुराम जी ने संसार व्यवहार और राज्य अधिकार अनियंत्रित मानवीय प्रतापी ज्योति जगमगा रहा है ।उस समय उनका आदर्श अलग था। जो ईश्वर के अवतार को मूर्तिमान करता है वही परशुराम जी थे।
अंत में डॉ सूखतंकर का कथन की ऋषियो में यदि कोई ईश्वर का अवतार स्वीकृत हुआ तो वह केवल भगवान परशुराम हैं।
भगवान परशुराम की जयंती आज भी मोकामा में काफी धूमधाम से मनायी जाती है। मौके पर विशाल मेला का आयोजन किया जाता है।
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