नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) जिले के कश्मीर कहे जाने वाले ऐतिहासिक व धार्मिक गोविन्दपुर प्रखंड क्षेत्र के शीतल जल प्रपात ककोलत में पिछले तीन वर्षों की भांति इस वर्ष भी बिसुआ संक्रांति यानी 14 अप्रैल को मेला का आयोजन नहीं हो पायेगा। ऐसा नहीं होने से स्थानीय लोगों के बीच निराशा का भाव है। पहले कोरोना और अब निर्माण के नाम पर प्रवेश पर रोक लगाये जाने से संस्कृति पर खतरा उत्पन्न होने लगा है।
ना यादगार जमाने से बिसुआ संक्रांति के अवसर पर ककोलत जलप्रपात के पास तीन दिनों का मेला लगता आया है। स्थानीय से लेकर बाहरी सैलानियों का आगमन होता आ रहा था। वैसे तो होली के बाद से ही नहीं लगातार गर्मी के चार महीने तक प्रतिदिन हजारों सैलानियों का आना होता था लेकिन बिसुआ संक्रांति की बातें ही कुछ और है।
मान्यता है कि बिसुआ संक्रांति के अवसर पर ककोलत जलप्रपात में स्नान करने से सर्प व गिरगिट योनी से मुक्ति मिलती है। स्नान के बाद लोग सतुआ का भोजन किया करते थे, लेकिन लगातार तीन वर्षों से लोग बिसुआ संक्रांति के अवसर पर विशेष स्नान से बंचित रह रहे हैं।
पांडवों ने किया था अज्ञातवास:- मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां अज्ञातवास किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण यहां पधारे थे। राजा नृग श्राप के कारण गिरगिट के रूप में यहां निवास कर रहे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनका उद्धार कर गिरगिट योनी से मुक्ति दिलाया था। तब बिसुआ संक्रांति व्यतीत हो रहा था।
मनाया जाता है त्योहार:- बिसुआ संक्रांति के मौके पर पूरे प्रखंड के लोग तीन दिनों तक त्योहार मना ककोलत जलप्रपात में स्नान करते हैं। 13 अप्रैल को रोटीयानी यानी गेहूं के आटे में चना का मसालेदार दाल भरकर खाते और आगंतुकों को खिलाते हैं तो 14 अप्रैल को सतु का भोजन सभी परिवार करते हैं। पर्व तो मनायेंगे लेकिन ककोलत स्नान से बंचित रहेंगे।
चल रहा सौन्दर्यीकरण का काम:- फिलहाल पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वन विभाग द्वारा सौन्दर्यीकरण का कार्य कराये जाने के कारण सैलानियों का प्रवेश निषेध कर दिया गया है। ऐसे में न केवल स्नान करने से बंचित रह रहे हैं बल्कि मेला का आयोजन भी नहीं हो पा रहा है।
मनाया जाना है ककोलत महोत्सव:-राज्य सरकार ने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ककोलत महोत्सव मनाये जाने का आदेश दे रखा है। हिसुआ संक्रांति के पूर्व ककोलत के बजाय नवादा नगर भवन में ककोलत महोत्सव का आयोजन कर जिला प्रशासन ने खानापूर्ति कर ली है जिसका कोई औचित्य नहीं था।
बहरहाल ककोलत मेले का आयोजन लगातार तीन वर्षों से नहीं होने के कारण संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा है।
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