New Delhi, Political Desk: पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका में आज हो रहे राष्ट्रपति चुनाव पर है. सभी को ये जानने की उत्सुकता है कि अगले चार साल के लिए सुपरपॉवर अमेरिका की बागडोर कौन संभालेगा? पर क्या आप जानते हैं आज अमेरिका में सिर्फ प्रेसिडेंट के लिए ही वोट नहीं डाले जा रहे बल्कि वोटर्स अमेरिकी कांग्रेस यानी संसद के सदस्यों के लिए भी मतदान कर रहे हैं?
संसद के यह सदस्य यूएस में किसी बिल या कानून को पास कराने में अहम भूमिका निभाते हैं. अमेरिकी संसद को कांग्रेस कहा जाता है. भारत की तरह ही यहां दो सदन होते हैं. भारत के निचले सदन यानी लोकसभा की तरह वहां होती है प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव. जिसके सभी 435 सीटों के लिए चुनाव होते हैं. भारत के उच्च सदन यानी राज्यसभा की तरह वहां का उच्च सदन सीनेट कहलाता है. जिसके 100 सदस्य होते हैं लेकिन एक-तिहाई यानी 34 सीटों के लिए ही चुनाव हो रहे हैं.
इसी बहाने आइए जानते हैं कि इन दोनों सदनों की अमेरिका में क्या अहमियत है, किसके पास किस तरह की शक्तियां हैं और हाउस की तरह सीनेट की सभी 100 सीटों पर एक साथ चुनाव क्यों नहीं लड़ा जाता?
अमेरिकी संसद का हिसाब किताब
हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव जिले के आधार पर तय होता है. हर जिले से एक. इनका कार्यकाल दो साल का होता है. वहीं सीनेट के सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं. अमेरिका में फिलहाल 50 राज्य हैं तो सीनेट हर राज्य से दो चुने जाते हैं. चाहे राज्य की आबादी कितनी भी बड़ी हो या छोटी. इस तरह 100 सीनेटर्स हुए. इनका कार्यकाल 6 साल का होता है.
इस बार सीनेट के लिए 34 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. इसके पीछे वजह है अमेरिका के संविधान में हुआ संशोधन जिससे लगभग एक तिहाई हिस्सा दो साल के बाद रिटायर हो जाता है. इन रिटायर हुए लोगों की नए सीनेटर ले लेते हैं.
इसलिए हर आम चुनाव में इन खाली पदों पर वोट डलते हैं. किसी विशेष राज्य के दोनों सीनेटरों का कार्यकाल इस तरह तय किया जाता है कि वे एक ही समय पर रिटायर न हो. और इस तरह सीनेट कभी भंग नहीं होती.
संसद में किसकी पकड़ मजबूत?
हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में फिलहाल रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है. पर सदन के इतिहास में अबतक के सबसे कम मार्जिन के साथ. रिपब्लिकन के पास 220 है तो डेमोक्रेटिक के पास 212. जबकि तीन सीटें खाली हैं. इतने कम अंतर का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है. अगर पांच रिपब्लिकन भी किसी वोट पर दलबदल करते हैं, तो वे अपना बहुमत से हाथ धोना पड़ता है.
सीनेट की बात करें तो यहां भी स्थिति कमोबेश वही है मगर डेमोक्रेट पार्टी के पक्ष में है. उनके पास 47 सीटें हैं और चार निर्दलीयों का साथ भी है. तो ऐसे में कुल 51 सीटों पर डेमोक्रेट्स की पकड़ है, कमजोर ही सही.
रिपब्लिकन के पास वहीं सीनेट में 49 सीटें हैं. कांग्रेस पर अपनी बढ़त मजबूत करने के लिए डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन सीनेट पर भी पकड़ बनाना चाहते हैं ताकि अगर वे चुने जाएं तो राष्ट्रपति के सामने आगे भी कोई रुकावट न हो.
सीनेट की शक्तियां क्या हैं?
सीनेट के पास फैसले लेने की ताकत काफी ज्यादा होती है. देश का वाइस प्रेसिडेंट सीनेट का सभापति होता है. ये पद फिलहाल मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के पास है.
एक और बात वाइस प्रेसिडेंट सदन की अध्यक्षता तो करता है लेकिन किसी बहस का हिस्सा नहीं होता. उप-राष्ट्रपति सिर्फ तभी वोट कर सकता है जब किसी मामले पर सीनेट में टाई हो जाए. ऐसे में वो टाई-ब्रेकिंग वोट का काम करता है माने वो जिस साइड को अपना समर्थन देगा उसे ही आखिरी फैसला मान लिया जाता है.
सदन का ये हिस्सा कितना ताकतवार है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं राष्ट्रपति के फैसलों को इससे होकर गुजरना पड़ता है. अगर प्रेसिडेंट कोई ऐसा फैसला करें जो सीनेट को मंजूर नहीं तो फैसला रुक जाता है. किसी भी ट्रीटी (संधि) पर सहमति के लिए सीनेट के दो तिहाई सदस्यों की मंजूरी जरुरी है.
सीनेट में उपराष्ट्रपति का वोट है अहम
34 सीनेट सीटों में से 11 सीटों पर रिपब्लिकन लड़ रही है, 19 सीटों पर डेमोक्रेट और चार सीटें निर्दलीय जो डेमोक्रेट का ही साथ देते हैं.
सीनेट पर कब्ज़ा करने के लिए रिपब्लिकन को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. अगर वे व्हाइट हाउस नहीं भी जीतते हैं तो उन्हें 2 सीटे हीं ज्यादा चाहिए और अगर वे जीत भी जाएं तो सिर्फ एक 1 सीट की ही बढ़त चाहिए.
ऐसा इसलिए है क्योंकि उपराष्ट्रपति सीनेट में टाई-ब्रेकिंग वोट की भूमिका निभाता है. मतलब ये हुआ कि अगर किसी मामले में सीनेट में वोट बराबर हो जाएं ऐसे में उपराष्ट्रपति जिस ओर जाता है, वही फैसला अंतिम माना जाता है.
तो जाहिर है अगर रिपब्लिकन पार्टी राष्ट्रपति का चुनाव जीतती है, तो ट्रम्प के साथी जेडी वेंस सीनेट के सभापति की कमान संभालेंगे. और अगर ऐसी किसी उलझाऊ स्थिति की नौबत आई तो वो रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में ही रहेंगे.
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव अमेरिकी कांग्रेस का निचला सदन कहलाता है. इसमें 435 प्लस वाशिंगटन डीसी (डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया) के 3 सदस्य होते हैं. इस सदन के सदस्यों के कार्यकाल 2 साल का होता है. इसके बाद तुरंत सदन के नए सदस्य चुने जाते हैं.
पहले इसी हाउस में कोई फैसला लिया जाता है. इसके बाद वो सीनेट जाता है और वहां से सहमति मिलने पर राष्ट्रपति के पास पहुंचता है. इसके अलावा हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के पास कई विशेष ताकतें हैं. जैसे यहां के सदस्य चाहें तो राजस्व से जुड़े सभी विधेयकों पर अपने-आप फैसला ले सकते हैं.
इसके अलावा एक काफी अहम शक्ति सीधे राष्ट्रपति चुनने को लेकर भी है. मिसाल के तौर पर अगर इलेक्टोरल कॉलेज में किसी को भी बहुमत न मिले तब ये हाउस राष्ट्रपति चुन सकता है. अमेरिकी इतिहास में ऐसा साल 1824 के राष्ट्रपति चुनाव में हुआ था जब हाउस को बीच में आना पड़ा था और इस तरह जॉन क्विंसी एडम्स अमेरिका के 6वें राष्ट्रपति बनें थे.
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्यों के पास इतनी छूट है कि वे सरकार के कामों पर नजर रख सकते हैं. ये लोग प्रेसिडेंट पर इमपीचपेंट (महाभियोग) का केस भी चला सकते हैं, जब राष्ट्रपति पर देशद्रोह, भारी भ्रष्टाचार या दुष्कर्म का आरोप हो.
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