पाण्डेय गंगौट में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मड़ही पूजा का आगाज आज

👉

पाण्डेय गंगौट में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मड़ही पूजा का आगाज आज



प्रतिनिधि, विश्वास के नाम कौआकोल : 

प्रखंड के पाण्डेय गंगौट गांव स्थित मड़ही में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाला मड़ही पूजा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। वारिस पिया के परम अनुयायी व महान सूफी संत श्रीश्री 1008 नंदबाबा की दो दिवसीय वार्षिकोत्सव पूजा का आगाज बुधवार से हो जाएगा। गुरूवार तक अनवरत जारी रहने वाली पूजा की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मड़ही पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि समिति के सदस्यगण व पाण्डेय गंगौट गांव के समस्त ग्रामीण पूजा की तैयारी में जोर-शोर से लगे हुए हैं। बुधवार को सूफी व वारसी भजन के प्रसिद्ध कलाकारों की प्रार्थना और सूफी भजनों के बीच विधि-विधान के साथ नंदबाबा की समाधि को शुद्ध गंगाजल से पवित्र स्नान कराया जाएगा। इसके बाद यज्ञोपवीत (जनेऊ) चढ़ाया जाएगा। जनेऊ डालने के बाद समाधि पर धोती, कुर्ता (मिरजई), टोपी सहित सभी तरह के शृंगार चढ़ाने के बाद 56 प्रकार का भोग लगाकर नंदबाबा की आराधना की जाएगी। 


सरकारी चादरपोशी की होगी रस्म अदायगी

पूजन के क्रम में सरकारी स्तर पर भी पूजा व चादरपोशी की रस्म अदायगी होगी। इस सरकारी पूजा के बाद आम लोगों के द्वारा चादरपोशी व पूजन का सिलसिला शुरू होगा। इस दरम्यान मन्नतें पूरी होने पर दूर-दराज व विभिन्न प्रदेशों से आये श्रद्धालुओं द्वारा चादरपोशी एवं प्रसाद चढ़ाने का सिलसिला अनवरत रूप से चलता रहेगा। वहीं, इस दरम्यान काफी संख्या में लोग अपनी मन्नतें मांगने के लिए कतारबद्ध होकर नंदबाबा की अराधना में लीन रहेंगे। जहां हर प्रार्थी व व्यक्ति को बारी-बारी से नंदबाबा एवं महंथ बाबा की समाधि पर माथा टेकने व दर्शन करने का अवसर प्राप्त हो सकेगा। 


हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है मड़ही पूजा

पाण्डेय गंगौट में होने वाली मड़ही पूजा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यह समाज को एक खास संदेश देने का काम करता है। गुरुवार को 4 बजे से प्रसाद वितरण करने का कार्य शुरू होगा। इस दो दिवसीय पूजा को लेकर पाण्डेय गंगौट तथा इसके आसपास के कई गांव अतिथियों एवं मेहमानों से पट चुका है। पूजा के दरम्यान वैसे लोगों की अच्छी खासी भीड़ होती है, जो लोग अपनी मन्नतें पूरी होने के बाद नंदबाबा एवं महंथ की समाधि पर माथा टेकने पहुंचते हैं। मड़ही पूजा की खासियत रही है कि यहां लोग जात-पात, धर्म सम्प्रदाय, ऊंच-नीच की दुर्भावनाओं से हटकर एक साथ एक परम्परावादी रीति-रिवाज से पूजा करते हैं। जो परंपरा शुरू से लेकर आज तक चलती आ रही है। यहां की पूजा का नजारा ही अलग रहता है। इसी खासियत को लेकर पूजा के दरम्यान यहां मजहब की दीवार पूरी तरह से ध्वस्त हो जाती है। क्या हिन्दू और क्या मुस्लमान, बच्चे तथा बूढ़े, सभी एक ही रंग में रंग कर या वारिस की धून पर थिरकते नजर आते हैं। 


दूर-दराज से पहुंचते हैं श्रद्धालु

गौरतलब है कि महंथ बाबा के इस वार्षिकोत्सव में उतरप्रदेश स्थित देवाशरीफ के अलावा देश के विभिन्न प्रान्तों से वारिस धर्माबलम्वी वर्ष में दो बार पाण्डेय गंगौट गांव स्थित मड़हई में महंथ बाबा एवं नंदबाबा के दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं। इस कारण मड़ही पूजा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। बता दें कि महंथ बाबा का वार्षिकोत्सव कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि तथा नंदबाबा का वार्षिकोत्सव अषाढ़ माह के अठारहवीं तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाई जाती है। जिसमें काफी संख्या में वारिस पिया के अनुयायी व श्रद्धालु मन्नतें मांगने तथा मन्नतें पूरी होने पर चादरपोशी करने पहुंचते हैं।

Post a Comment

Previous Post Next Post