साइबर ठगी :- हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखाpolice!

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साइबर ठगी :- हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखाpolice!

नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) 

 पुलिस का दावा जो हो, साइबर थाने में तकनीकी सेल के गठन और अलग साइबर थाना खुल जाने के बावजूद साइबर ठगी अपनी रफ्तार में है। अंतर सिर्फ इतना आया है कि अपराध का तरीका बहुत कुछ बदल गया है। धंधे से जुड़े लोग अब गांव-घर से दूर जंगलों में कहीं छिप कर या फिर लंबी यात्रा पर चलती गाड़ियों में बैठकर इसे अंजाम दे रहे हैं। 

ऐसा इसलिए कि इससे जगह की पहचान नहीं हो पाती है । पुलिस भटक कर रह जाती है। सामाजिक स्वीकार्यता और जरूरत से ज्यादा लचीला कानून भी इस अपराध पर अंकुश लगाने में बड़ा बाधक बना हुआ है। 

‘हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा’ के रूप में हो रही अंधाधुंध अवैध कमाई में लिप्त युवक पढ़े-लिखे भले कम हों, साइबर कानून का उन्हें पूरा ज्ञान है। 

सामाजिक स्वीकार्यता

साइबर क्राइम में तीन से पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। जमानत आसानी से मिल जाती है। इस कारण मनमाफिक धन प्राप्ति के लिए धंधेबाज बेहिचक तैयार रहते हैं। 

जहां तक सामाजिक स्वीकार्यता  की बात है तो युवकों को इस अपराध में आमतौर पर माता-पिता और गांव के लोग ही झोंकते हैं, संरक्षण भी देते हैं। ओहारी का गोलू इसका साबुत उदाहरण है। सरकारी सेवा में अवसर के लिए वह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा था। गांव के भटके युवकों की अल्पकाल की संपन्नता से प्रभावित माता-पिता और गांव के अन्य कई लोगों के दबाव में साइबर क्रिमिनल बन गया। 

ऐसी ही जगहों में हैं अड्डे.

ठगी को बना लिया रोजगार:-

अपसड़ गांव के कई लोग हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़कर धंधे में शामिल हो गये। थोड़े ही समय में उन लोगों की आर्थिक स्थिति अन्य युवकों के धंधे से जुड़ने का बड़ा अधार बन गया। ओहारी के दो सगे भाई हैं। हाल में दोनों की गिरफ्तारी हुई। पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि गांव के नब्बे प्रतिशत युवकों ने इसे अपना करियर बना रखा है। सिर्फ ओहारी ही नहीं अपसड़, गोसपुर, पार्वती, महरथ समेत सैकड़ों गांवों के दिग्भ्रमित युवा भी इस धंधे में लगे हैं। 

गलत नहीं मानता परिवार:-

ऐसे लोगों की समझ में स्कूली पढ़ाई-लिखाई बेकार है। साइबर अपराधी बन जाना उससे बेहतर है। इलाकाई लोग साइबर अपराधियों को ‘लायक बेटा’ मानते हैं। तर्क यह कि परिवार के लिए मेहनत करता है तो इसमें गलत क्या है? यही वह सोच है कि पुलिस जब कभी इन साइबर अपराधियों पर हाथ डालने की कोशिश करती है तो लगभग पूरा गांव अपराधियों के पक्ष में खड़ा हो उठता है। ईंट-पत्थर से खदेड़ देता है। 

पुलिस के आलाधिकारियों का मानना है कि बैंक और टेलीकाम कंपनियों के सहयोग एवं स्थानीय पुलिस के संरक्षण में यह अपराध विस्तार पा रहा है।

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