नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) चुनाव आयोग ने ऐन चुनाव के मौके पर जिले के डीएम- एसपी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब जब बाहर का रास्ता दिखाया तो इसके कारणों पर तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। आखिर ऐसा क्या कारण रहा कि दोनों नप गये।
वैसे डीएम काफी मिलनसार थे। मीडिया से लेकर हर किसी से आसानी से मिल उनकी बातों को सुनते थे। लेकिन एक गलती उन्होंने यह की कि जिले में मतदाताओं की संख्या शुरू से ही 22 लाख से उपर न केवल चुनाव आयोग बल्कि मीडिया को भी बताते रहे। जबकि मतदाताओं की संख्या 20 लाख से उपर ही है। इस गलती को सुधारने के बजाय बार बार दुहराया जाना आयोग को रास नहीं आया और वे आयोग के रडार पर ऐसे आये कि यहां से चलता कर दिया। इसके अलावा भी कुछ और कारण हो सकता है, लेकिन यह गंभीर मामला था जिसकी इजाजत नही दी जा सकती।
जहां तक सवाल एसपी का है तो योगदान के बाद से ही ये विवादों में रहे। इनकी शिकायत मुख्यमंत्री के पास एक नहीं दर्जनों बार पहुंची लेकिन सुधार के बजाय शिकायतकर्ताओं को सबक सिखाने में लगे रहे। हां! थानेदारों की मनमानी की छूट इन्होंने अवश्य दे रखी थी। खुद तो कभी मीडिया के सामने आये नहीं, मीडिया कर्मियों को थानेदारों के माध्यम से प्रताड़ित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा।
पर्यवेक्षण के मामले में वही किया जो थानेदारों ने कहा। न्यायालय ने पाक्सो ऐक्ट के मामले में एक नहीं दो दो बार तलब किया। गोविन्दपुर के डुमरी घटना में पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए हमेशा गलतबयानी जग जाहिर है।
जनता व मीडिया की शिकायत पर जांच कमिटी का गठन किया लेकिन उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया। जाहिर है ऐसा क्यों नहीं?
चुनाव की घोषणा के साथ ही पारदर्शिता बनाये रखने के लिए एसपी को मीडिया के माध्यम से सूचना उपलब्ध कराया जाना है। इसके लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस करना आवश्यक है। चुनाव आयोग के नियमों का उन्होंने अनुपालन नहीं किया। फिर चला चुनाव आयोग का डंडा। उनके तबादला से जिले के जनमानस ने राहत की सांस ली तो थानेदारों में बेचैनी देखी जा रही है।
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