बिहार की जातीय राजनीति के बीच मुसलमानों के पास कितनी सीटों पर है जीत का फॉर्मूला?

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बिहार की जातीय राजनीति के बीच मुसलमानों के पास कितनी सीटों पर है जीत का फॉर्मूला?

 


हमको भूला दीजिएगा जी, उन्हीं लोगों को वोट दीजिएगा...एनडीए गठबंधन में शामिल जेडीयू के सुप्रीम नेता नीतीश कुमार अपने इसी तरह के जुमले से बिहार के मुसलमानों को रिझाने में लगे हैं. 

हालांकि, अकलियतों को रिझाने का नीतीश कुमार का यह पहला प्रयास नहीं है. 2019 और 2020 में भी नीतीश मुसलमानों को साधने के लिए कई तरह के प्रयोग किए थे, लेकिन उसमें उन्हें नाकामी हाथ लगी.

नीतीश कुमार के अकलियत प्रेम ने बिहार के मुसलमानों के सियासी रसूख को फिर से उजागर कर दिया है. 40 लोकसभा सीटों वाली बिहार में कम से कम 17 ऐसी सीटें हैं, जहां पर मुसलमान जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

जाति आधारित राजनीति वाले बिहार में मुसलमानों को पसंगा भी माना जाता है. पसंगा तराजू का वो पत्थर होता है, जो जिस तरफ रखा जाता है, उस तरफ का भार बढ़ जाता है. 

बिहार की वो सीटें, जहां मुसलमानों का है दबदबा

बिहार में 10 सीटें ऐसी हैं, जहां पर 18 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान हैं. इनमें किशनगंज सीट पर सबसे ज्यादा 68 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. कटिहार, अररिया और पूर्णिया सीट पर 40 प्रतिशत के आसपास मुसलमान हैं. 

2019 से पहले बिहार से 3-4 मुस्लिम नेता हर लोकसभा चुनाव में जीतकर संसद पहुंचते थे. 

1. किशनगंज- सीमांचल इलाके के इस सीट की गिनती देश के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले सीटों में होती है. 1967 का चुनाव छोड़ दिया जाए तो यहां से अब तक हर बार मुस्लिम ही सांसद बनते रहे हैं. 2009 से यहां कांग्रेस के नेताओं को जीत मिल रही है. 

2019 में मोदी लहर में भी यहां से मुस्लिम समुदाय के नेता ही जीतकर लोकसभा पहुंचे. किशनगंज लोकसभा में विधानसभा की 6 सीटें हैं. वर्तमान में इन सभी 6 सीटों पर मुस्लिम विधायक हैं. 

2. कटिहार- लोकसभा की यह सीट भी मुस्लिम बाहुल्य है. यहां पर करीब 43 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. 1952 से लेकर अब तक यहां पर 6 बार मुस्लिम नेताओं ने जीत दर्ज की है. पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर यहां से 5 बार सांसद रहे हैं.

2019 में तारिक अनवर जेडीयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी से चुनाव हार गए. इंडिया गठबंधन से तारिक इस बार भी चुनावी मैदान में हैं. कटिहार से वर्तमान में 6 विधायक हैं, जिसमें से 4 हिंदू समुदाय और 2 मुस्लिम समुदाय के हैं.

3. अररिया- सीमांचल की अररिया लोकसभा भी मुस्लिम बाहुल्य है. यहां पर मुसलमानों की आबादी करीब 42 प्रतिशत हैं. यहां 2014 में पहली बार किसी मुस्लिम कैंडिडेट को जीत मिली थी. आरजेडी के तसलीमुद्दीन ने बीजेपी के प्रदीप कुमार को हराया था. 

इस बार तसलीमुद्दीन के बेटे शहनवाज को आरजेडी ने मैदान में उतारा है. अररिया में विधानसभा की 6 सीटें हैं, जिसमें से वर्तमान में 2 पर मुस्लिम समुदाय और 4 बार हिंदू समुदाय के विधायक हैं.

4. पूर्णिया- बिहार की इस सीट पर करीब 38 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. हालांकि, यहां पर अब तक 3 बार ही मुस्लिम समुदाय के नेता सांसदी का चुनाव जीत पाए हैं. 

इस बार यहां पर 3 प्रमुख दावेदार हैं, जिसमें से एक भी मुस्लिम समुदाय के नहीं है. आरजेडी ने गंगोता जाति से आने वाले बीमा भारती, जेडीयू ने कुशवाहा समाज के संतोश कुशवाहा को मैदान में उतारा है.

वहीं सीमांचल के नेता पप्पू यादव भी निर्दलीय पूर्णिया से चुनाव लड़ रहे हैं. कहा जा रहा है कि जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह मुस्लिम मतदाता तय करेंगे.

5. मधुबनी- मिथिलांचल की मधुबनी सीट भी मुस्लिम बाहुल्य है. यहां पर मुसलमानों की आबादी करीब 26 प्रतिशत है. 1952 से अब तक यहां 4 बार मुस्लिम उम्मादवार चुनाव जीते हैं, जिसमें 2 बार पूर्व केंद्रीय मंत्री शकील अहमद को जीत मिली है. 

इस बार बीजेपी ने अशोक यादव तो इंडिया गठबंधन से आरजेडी ने अली अशरफ फातमी को उम्मीदवार बनाया है. यहां की केवटी, बिस्फी, मधुबनी और हरलाखी विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है.

6. दरभंगा- बिहार की दरभंगा लोकसभा सीट पर भी मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. दरभंगा में करीब 23 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. अब तक यहां 6 बार मुस्लिम कैंडिडेट को जीत मिली है. दिलचस्प बात है कि 1952 के चुनाव में भी इस सीट से मुस्लिम समुदाय के अब्दुल जलील ही सांसद बने थे.

हालांकि, इस बार बड़ी पार्टियों ने यहां से किसी भी मुसलमानों को टिकट नहीं दिया है. बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय के गोपालजी ठाकुर और आरजेडी ने अहीर समाज के ललित यादव को उम्मीदवार बनाया है.

7. सीतामढ़ी- सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर मुसलमानों की आबादी करीब 21 प्रतिशत हैं. इसके बावजूद अब तक इस सीट से कोई भी मुस्लिम नेता सांसद नहीं बने हैं. हालांकि, हार्ड हिंदुत्व पार्टी को भी यहां से जीत नहीं मिली है.

इस बार यहां पर जेडीयू के देवेश चंद्र ठाकुर का मुकाबला आरजेडी के अर्जुन राय से है.

8. पश्चिमी चंपारण- 2008 के परिसीमीन में बेतिया सीट पश्चिम चंपारण हो गई. यहां भी मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है. बेतिया सीट पर 2 बार मुस्लिम समुदाय के नेता चुनाव जीत चुके हैं. 

हालांकि, नए परिसीमन के बाद पार्टियों ने यहां पर मुसलमानों को टिकट देने से किनारा कर लिया.

9. पूर्वी चंपारण- 2008 से पहले मोतिहारी के नाम से मशहूर इस सीट पर भी मुसलमानों का दबदबा है. हालांकि, यहां से कोई मुस्लिम नेता चुनाव नहीं जीत पाए हैं.

इस लोकसभा सीट पर करीब 21 प्रतिशत मुसलमान हैं. इस बार बीजेपी ने यहां से राधामोहन सिंह और इंडिया गठबंधन ने राजेश कुशवाहा को मैदान में उतारा है.

10. सीवान- बिहार की सीवान सीट पर मुसलमानों की आबादी 18 प्रतिशत के आसापास है. इस सीट पर 9 बार मुस्लिम समुदाय के नेताओं को जीत मिली है. 4 बार बाहुबली नेता शहाबुद्दीन यहां से सांसद रहे हैं.

हालांकि, इस बार सीवान का सिनेरियो बदला-बदला है. जेडीयू ने रमेश कुशवाहा तो आरजेडी ने अवध बिहारी चौधरी को मैदान में उतारा है. 

इन सीटों पर खेल मुस्लिम वोटर्स किंगमेकर

बिहार की दबदबे वाली 10 सीटों के अलावा 7 सीटें ऐसी है, जहां पर मुसलमान किंगमेकर की भूमिका में है. ये सीटें हैं- गोपालगंज (17 प्रतिशत), सुपौल (17 प्रतिशत), शिवहर (16 प्रतिशत), मुजफ्फरपुर (15 प्रतिशत), खगड़िया (15 प्रतिशत), बेगूसराय (14 प्रतिशत) और गया (13 प्रतिशत)

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