जंगल व पहाड़ लांघ कच्चे पगडंडियो के रास्ते आज भी कौआकोल पहुंचते हैं ग्रामीण asuvidha

👉

जंगल व पहाड़ लांघ कच्चे पगडंडियो के रास्ते आज भी कौआकोल पहुंचते हैं ग्रामीण asuvidha

  



- दशकों बाद भी दनियां के ग्रामीणों को पक्की सड़क नसीब नहीं

- प्रखंड मुख्यालय तक आने-जाने में उठानी पड़ती है परेशानी

- हर चुनाव में चर्चा में आता है गांव, चुनाव खत्म होते ही नहीं आती याद 

- अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे दनियां के ग्रामीण 

--------- 

अमन सिन्हा इलू, कौआकोल : 

जंगल-पहाड़ से होकर उबड़-खाबड़ रास्ते, कच्ची पगडंडियां, तमाम तरह की दुश्वारियां। प्रखंड मुख्यालय तक आवागमन के साधन नहीं। घने जंगलों में बसी आबादी। हम बात कर रहे जिले के कौआकोल प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित दनियां गांव की। यह गांव हर चुनावों में चर्चा आता है। ग्रामीण एक अदद रास्ते की मांग को लेकर वोट बहिष्कार करते हैं। चुनाव के दौरान यह इलाका चर्चा का विषय बन जाता है। लेकिन चुनाव खत्म होते ही गांव के अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। देश की आजादी के कई दशक बीत गए। इन वर्षों में सूबे में कई विकास काम हुए। खासकर गांवों को सड़क से जोड़ने का काम तेजी से हुआ। पर उग्रवाद प्रभावित दनियां के ग्रामीण अभी भी पक्की सड़क की सुविधा से वंचित हैं। यह गांव कौआकोल प्रखंड के महुडर पंचायत अंतर्गत है। इस गांव के लोगों को जंगल-पहाड़ लांघते हुए कच्चे पगडंडियो के रास्ते प्रखंड मुख्यालय आना पड़ता है। बरसात के मौसम में तो इस रास्ते से सफर करना उनके लिए टेढ़ी खीर के समान है। बावजूद सरकार और प्रशासन ने उनकी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया। लिहाजा दनियां के ग्रामीण खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। 

ग्रामीणों का कहना है कि प्रतिदिन पहाड़ व जंगल के रास्ते पैदल आवागमन करना पड़ता है। सरकारी दफ्तरों में काम हो या फिर दिनचर्या की जरुरतें, उन्हें कौआकोल आने की मजबूरी है। लेकिन रास्ते से जुड़ी समस्या का समाधान नहीं हो सका है। ग्रामीण कहते हैं कि जंगल-पहाड़ के रास्ते बाजार तक आने-जाने में काफी परेशानी होती है। ग्रामीणों का कहना है कि जब भी चुनाव आता है तो नेता हम ग्रामीणों से वोट की उम्मीद रखते हैं। नेताओं के समक्ष सड़क का मुद्दा उठाया जाता है। लेकिन आश्वासन के अलावा आज तक कुछ भी नहीं मिल सका है। ग्रामीणों ने बताया कि चार दशक पूर्व सड़क निर्माण को लेकर रुपरेखा तैयार की गई थी। तब ग्रामीणों में आस जगी कि जल्द ही सड़क बन जाएगा। परन्तु जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के कारण सड़क निर्माण का कार्य आज तक खटाई में ही पड़ा हुआ है। सड़क नहीं होने के कारण गांव के बच्चों को स्कूल तथा कोचिंग जाने में काफी असुविधा होती है। बुजुर्ग एवं बीमार लोगों खासकर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक लाने ले जाने आने में काफी कठिनाई होती है।

पांच किलोमीटर का है जंगल और पहाड़ का सफर 

दनिया अनुसूचित जाति तथा जनजाति बहुल गांव है। यहां की आबादी लगभग छह सौ के आस पास है। यह गांव बिहार एवं झारखंड की सीमा पर पूरी तरह से घनघोर जंगल के बीच बसा हुआ है। गांव के चारों तरफ घनघोर जंगल एवं पहाड़ी है। करीब पांच किलोमीटर के पहाड़ व जंगल के रास्ते से सफर करते हुए ग्रामीणों को प्रत्येक दिन प्रखंड कार्यालय एवं कौआकोल बाजार पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों की व्यथा है कि गांव से बाजार तक पहुंचने के लिए यातायात की कोई सुविधा नहीं होने के कारण वे रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं माह भर का एक दिन बाजार से खरीद कर ले आते हैं और किसी प्रकार पूरे महीने गुजार लेते हैं। पर जब कभी जीवन रक्षक दवा आदि की जरूरत पड़ती है या घर के कोई सदस्य बीमार पड़ जाते हैं तो उस परिस्थिति में दवा खरीदने के लिए मरीज को चिकित्सक तक पहुंचाना उनके लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। इस परिस्थिति में कई बार लोगों को जान भी गंवानी पड़ी है।

वोट का कर चुके हैं बहिष्कार, फिर भी नहीं बनी बात

गौरतलब है कि रास्ते की मांग को लेकर दनियां के ग्रामीण वोट बहिष्कार भी कर चुके हैं। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया। इसके पूर्व 2014 एवं 2019 में भी वोट का बहिष्कार किया गया। रोड नहीं तो वोट नहीं के अल्टीमेटम के बावजूद आज तक बात नहीं बन सकी और समस्या जस की तस बनी हुई है।

Post a Comment

Previous Post Next Post