नई दिल्ली। कर्ण महाभारत का एक महत्वपूर्ण पात्र रहा है, जिनकी जन्म की कथा भी काफी रोचक है। पांडवों का सबसे बड़ा भाई होने के कारण भी कर्ण महाभारत के अंत तक अपने अधिकारों से वंचित रहा। उनसे अपने जीवन में कई कष्ट झेले। केवल दुर्योधन ने ही उसे अपना सच्चा मित्र माना, जिस कारण गलत होने के बाद भी कर्ण ने अंत तक दुर्योधन का साथ दिया।
कैसे हुआ कर्ण का जन्म
कथा के अनुसार, दुर्वासा ऋषि ने कुंती को एक वरदान दिया था, जिसके अनुसार, वह किसी भी देवता का स्मरण करके पुत्र प्राप्त कर सकती थी। इस वरदान के चलते कुंती ने सूर्य देव का आवाहन किया, जिससे उसे कर्ण की प्राप्ति हुई।
लेकिन कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले हुआ था, इसलिए लोक-लाज के दर से उसने कारण को त्याग दिया था और एक नदी में प्रवाहित कर दिया था। हस्तिनापुर के सारथी के रूप में कार्य करने वाले अधिरथ को पुत्र के रूप में कर्ण की प्राप्ति हुई। अधिरथ की पत्नी राधा ने कर्ण को बड़े ही स्नेह के साथ पाला, जिस कारण उसे राधेय भी कहा जाता है।
यह लोग भी जानते थे सच्चाई
कुंती ने सबसे ये बात सबसे छिपाकर रखी कि कर्ण उसका पुत्र है। कुंती के अलावा कर्ण के जन्म की सच्चाई नारद ऋषि, भगवान कृष्ण और विदुर भी को पता थी। इसी के साथ भीष्म पितामह और महाभारत ग्रंथ के रचयिता वेदव्यास भी यह बात जानते थे कि कर्ण, कुंती का पुत्र है।
भीष्म को कैसे हुआ ज्ञात
अपने अंतिम समय में जब भीष्म पितामह बाण शैय्या पर लेटे हुए थे, तब उन्होंने बताया कि वह कर्ण की सच्चाई जानते थे। उन्होंने पता था कि कर्ण अधिरथ और राधा का पुत्र नहीं, बल्कि सूर्य का पुत्र है, जो वरदान के रूप में कुंती को प्राप्त हुआ था। जब कर्ण ने पूछा कि उन्हें यह बात कैसे ज्ञात हुआ, तब भीष्म बोले कि नारद ऋषि से उन्हें कर्ण का परिचय प्राप्त हुआ था। इसके बाद श्रीकृष्ण और द्वैपायन व्यास से भी तुम्हारे जन्म का वृत्तांत ज्ञात हुआ।
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