कौआकोल में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मड़ही पूजा 10 से, तैयारी शुरू

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कौआकोल में हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मड़ही पूजा 10 से, तैयारी शुरू



- नंदबाबा के वार्षिकोत्सव पर आयोजित होती है प्रत्येक वर्ष मड़ही पूजा 

- कौआकोल में दो दिनों तक चलती है पूजा, टूट जाती है मजहब की दीवार

प्रतिनिधि, विश्वास के नाम कौआकोल : 

कौआकोल प्रखंड के पाण्डेयगंगौट गांव स्थित मड़ही में परमपूज्य संत शिरोमणि नंदबाबा की वार्षिकोत्सव के अवसर पर प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाला मड़ही पूजा 10 व 11 जुलाई को होगी। दो दिनों तक अनवरत जारी रहने वाली पूजा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। इस संबंध में पूर्व जिला परिषद सदस्य नारायण स्वामी मोहन ने बताया कि समिति के डा. साधु शरण सिंह एवं उपेन्द्र सिंह के अलावा पूजा समिति के समस्त सदस्यगण व पाण्डेयगंगौट गांव के ग्रामीण पूजा की तैयारियों में जोर-शोर से लगे हुए हैं। 

10 जुलाई को सूफी व वारसी भजन के प्रसिद्ध कलाकारों की प्रार्थना और सूफी भजनों के बीच विधि-विधान के साथ नंदबाबा की समाधि को शुद्ध गंगाजल से पवित्र स्नान कराया जाता है। इसके बाद यज्ञोपवीत (जनेऊ) चढ़ाया जाएगा। जनेऊ डालने के बाद समाधि पर धोती, कुर्ता (मिरजई), टोपी सहित सभी तरह के श्रृंगार  चढ़ाने के बाद 56 प्रकार का भोग लगाकर नंदबाबा की आराधना की जाती है। यह पूजा 10 जुलाई से लेकर 11 जुलाई तक अनवरत जारी रहेगा।


सरकारी चादरपोशी की होती है रस्म अदायगी

पूजन के क्रम में सरकारी स्तर पर भी पूजा व चादरपोशी की रस्म अदायगी होती है। इस सरकारी पूजा के बाद आम लोगों के द्वारा चादरपोशी व पूजन का सिलसिला शुरू होता है। इस दरम्यान मन्नतें पूरी होने पर दूर-दराज व विभिन्न प्रदेशों से आये श्रद्धालुओं द्वारा चादरपोशी एवं प्रसाद चढ़ाने का सिलसिला अनवरत रूप से चलता रहता है। वहीं, इस दरम्यान काफी संख्या में लोग अपनी मन्नतें मांगने के लिए कतारबद्ध होकर नंदबाबा की आना में लीन रहते हैं। जहां हर प्रार्थी व व्यक्ति को बारी-बारी से महंथ बाबा की समाधि पर माथा टेकने व दर्शन करने का मौका मिलता है। 


समाज को एक खास संदेश देती है पूजा

पाण्डेयगंगौट में होने वाली मड़ही पूजा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यह समाज को एक खास संदेश देने का काम करता है। इस दो दिवसीय पूजा को लेकर पाण्डेयगंगौट तथा इसके आसपास के कई गांव अतिथियों-मेहमानों से पट जाते हैं। पूजा के दरम्यान वैसे लोगों की अच्छी खासी भीड़ होती है, जो लोग अपनी मन्नतें पूरी होने के बाद नंदबाबा की समाधि पर माथा टेकने पहुंचते हैं। मड़ही पूजा की खासियत रही है कि यहां लोग जात-पात, धर्म सम्प्रदाय, ऊंच-नीच की दुर्भावनाओं से हटकर एक साथ एक परम्परावादी रीति-रिवाज से पूजा करते हैं। जो परंपरा शुरू से लेकर आज तक चलती आ रही है। यहां की पूजा का नजारा ही अलग रहता है। इसी खासियत को लेकर पूजा के दरम्यान यहां मजहब की दीवार पूरी तरह से ध्वस्त हो जाती है। क्या हिन्दू और क्या मुस्लमान, बच्चे तथा बूढ़े, पुरुष एवं महिलाएं सभी एक ही रंग में रंग कर या वारिस की धून पर थिरकते नजर आते हैं। 


दूर-दराज से पहुंचते हैं श्रद्धालु 

गौरतलब है कि परमपूज्य संत शिरोमणि नंदबाबा के इस वार्षिकोत्सव में उतरप्रदेश स्थित देवाशरीफ के अलावा देश के विभिन्न प्रान्तों से वारिस धर्माबलम्वी वर्ष में दो बार महंथ बाबा एवं नंदबाबा के दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं। इस कारण मड़ही पूजा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। बता दें कि महंथ बाबा का वार्षिकोत्सव कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि तथा नंदबाबा का वार्षिकोत्सव अषाढ़ माह के अठारहवीं तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाई जाती है। जिसमें काफी संख्या में वारिस पिया के अनुयायी व श्रद्धालु मन्नतें मांगने तथा मन्नतें पूरी होने पर चादरपोशी करने पहुंचते हैं।

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