इंडिया गठबंधन क्या नीतीश को पीएम पद का दे सकता है ऑफर?
प्रतिनिधि विश्वास के नाम
पटना:लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम सामने आ चुके हैं। इस चुनाव में बीजेपी को कम सीटें हासिल हुई हैं। बीजेपी को सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का सहारा लेना होगा तभी एनडीए की सरकार सत्ता पर काबिज हो सकेगी। अब देखना है कि नीतीश और नायडू का झुकाव किस ओर होता है। वैसे नीतीश और नायडू पीएम मोदी को पसंद नहीं करते हैं।
आपको बता दें कि चंद्रबाबू नायडू पांच साल पहले इसी प्रयास में थे कि नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से हटाया जाए। उस समय नायडू ने हर प्रत्येक राज्य की राजधानी में जाकर नेताओं से बात भी की थी। वह नेताओं से कह रहे थे हम सब मिलकर एक ऐसा फ्रंट बनाएं जो केंद्र की सत्ता से नरेंद्र मोदी को हटा सकें। साल 2023-24 में वही रोल नीतीश कुमार निभाते नजर आए थे।
नीतीश कुमार ने भी अलग-अलग दलों के बड़े नेताओं से मुलाकात की और सबको तैयार किया कि अगर हम एक हो जाए और एक ऐसा गठबंधन बनाएं जिसके दम पर नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बाहर किया जा सके। अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जिस मंशा से साल 2019 और 2024 में घूम रहे थे आज उसे साकार करने का उन्हें अवसर मिल गया है। इसे नियति ही कहेंगे कि कैसे राजनीति के कालचक्र का पहिया घूमा है कि आज दोनों नेता एनडीए में हैं, लेकिन उनके पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ पुराने मंसूबा पूरा करने का मौका है। आज नीतीश और नायडू इस हालात में हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं यह ये दोनों ही तय करेंगे।
लोकसभा चुनाव 2024 में जेडीयू ने 12 सीटें जीती हैं और चंद्रबाबू नायडू के पास 16 सीटें हैं। नीतीश के पास 2019 के मुकाबले चार सीटें कम है। लेकिन बिहार में कहा जाता है कि इलेक्शन कोई लड़े, पर राजा कौन बनेगा यह नीतीश कुमार तय करते हैं। उसी हालात में नीतीश फिर से आ गए हैं। हालांकि उन्हें यह मौका इस बार केंद्र में मिला है। यह संयोग देखकर यही लगता है कि नीतीश के हाथों लकीर में राजयोग है। फिलहाल पूरा देश दिल्ली की गद्दी को तय होते हुए देख रहा है।
अब यह संयोग ही है कि जब दिल्ली की राजगद्दी को स्थिर किया जाएगा तो उसके साथ और क्या-क्या हो जाएगा। यानी किस किस तरह की राजनीतिक डील तय होगी। इस डील का सबसे बड़ा फायदा नीतीश कुमार को बिहार में होगा। पिछले कुछ दिनों से पटना के राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार की सीएम की कुर्सी डगमगाने की चर्चा होने लगी थी। लोकसभा की 12 सीटें अब उसे स्थिर कर देगी।
लोकसभा चुनाव में जो हालात बने हैं उसके बाद यह साफ हो गया है कि भाजपा सपने में भी नहीं सोच सकती है कि नीतीश की सीएम कुर्सी को हिलाया जाए। अब नीतीश कुमार के पास केंद्र की सरकार को बचाए रखने के लिए 12 सीटों की संजीवनी है।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा जोरो पर है कि इंडिया गठबंधन क्या नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का पद ऑफर कर सकता है। वह 12 सीटों के साथ पीएम बनने का फैसला लेंगे या नहीं यह देखना होगा। अगर वह आगे बढ़ते हैं तो उन्हें कांग्रेस, सपा, टीएमसी जैसे दलों से आश्वासन लेना होगा कि वह उन्हें परेशान नहीं करेंगे, ताकि वह स्वतंत्रता के साथ केंद्र की सरकार चला सकें।
2020 बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने के बाद चिराग पासवान को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। चाचा पशुपति ने चिराग को अलग थलग कर पार्टी तोड़ी। गौर करने वाली बात यह है कि बीजेपी की सरकार ने पशुपति की पार्टी को मान्यता देने के साथ उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया। अब चिराग के पास मौका है कि अगर वह नीतीश कुमार के साथ एनडीए से अलग होते हैं तो केंद्र में एनडीए की सरकार को बनने से रोक सकते हैं।
यूं तो लोकसभा चुनाव में जीतन मांझी के पास केवल एक सीट है, लेकिन यह बड़े काम की हो सकती है। मांझी सख्त मोलभाव करने वाले नेता हैं। 4 विधायकों की बदौलत मांझी अपने बेटे संतोष को नीतीश कैबिनेट में मजबूत विभाग दिला चुके हैं। ऐसे में तय है कि केंद्र में एनडीए या इंडिया को सपोर्ट करने का मौका नहीं छोड़ेंगे।
साल 2004 की बात है। चंद्रबाबू नायडू के ऊपर आरोप लगे थे कि उन्हीं के दबाव में अटल बिहारी वाजपेयी अपने कार्यकाल के एक साल पहले लोकसभा चुनाव में जाने का फैसला किया था। जनता ने उसके शाइनिंग इंडिया के नारे को नकार दिया था और केंद्र में यूपीए की सरकार बनी। अब चंद्रबाबू नायडू के पास यह राजनीतिक अवसर आया है कि वह केंद्र में बीजेपी की सरकार बनाने में सहयोग करते हैं तो 2004 में अपने ऊपर लगे आरोप को धो सकते हैं।
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