इन दिनों कोरोना वैक्सीन बनाने वाली अस्ट्राजेनेका काफी चर्चा में है। कंपनी ने एक रिपोर्ट में ये माना कि वैक्सीन के दुर्लभ साइडइफेक्ट हो सकते हैं। इसी कंपनी ने कोविशील्ड वैक्सीन भी बनाई है। जब से ये खबर सामने आई, लोगों में डर का माहौल है। वहीं इसे लेकर कई अफवाहें भी उड़ रही हैं। इस बीच आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक ने वैक्सीन को लेकर उड़ रही अफवाहों पर ब्रेक लगाया है और कहा है कि कोविड-19 वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स बहुत कम मामलों में ही होते हैं, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है।
'30 दिनों के भीतर होते साइडइफेक्ट, अब नहीं'
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर आर गंगा केटकर ने कहा है कि खून के थक्के जमने जैसी परेशानी पैदा करने वाला 'थ्रॉम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम' (टीटीएस) सिर्फ वैक्सीन लेने के 5 से 30 दिनों के अंदर ही हो सकता है। अब इससे साइडइफेक्ट नहीं होंगे। उन्होंने बताया कि कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी अस्ट्राजेनेका ने ये माना है कि वैक्सीन से बहुत कम लोगों को ही ये परेशानी हो सकती है। डॉक्टर केटकर का कहना है कि वैक्सीन के फायदे, नुकसान से कहीं ज्यादा हैं। उन्होंने ये भी बताया कि जितने ज्यादा लोग वैक्सीन लेंगे, टीटीएस का खतरा उतना ही कम होता जाता है।'नुकसान से वैक्सीन के हैं फायदे'
उन्होंने आखिर में ये भी कहा कि वैक्सीन बनने के बाद भी वैज्ञानिक इसकी सुरक्षा पर नजर रखते हैं। किसी भी दवाई या वैक्सीन के कुछ दुर्लभ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, लेकिन हमें फायदों को भी ध्यान में रखना चाहिए। बता दें कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी अस्ट्राजेनेका पर केस चल रहा है। कुछ लोगों ने दावा किया कि उनकी वैक्सीन से खून के थक्के जमने जैसी परेशानी (टीटीएस) हुई और लोगों की मौत हो गई। भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ने अस्ट्राजेनेका से अनुमति लेकर कोविशील्ड वैक्सीन बनाई थी।'गूगल से गलत जानकारी का का शिकार हो जाते हैं लोग'
डॉक्टर केटकर का कहना है कि अफवाहों को दूर करना जरूरी है। वो कहते हैं कि लोग परेशान होकर गूगल पर ढूंढते हैं और गलत जानकारी का शिकार हो जाते हैं। अगर वो नकारात्मक सोच रखेंगे तो ये बचपन के टीकाकरण को भी प्रभावित कर सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि बिना सोचे समझे फैलाए जाने वाले अवैज्ञानिक तर्क समाज में सिर्फ डर बढ़ाते हैं, और इन्हें रोका जाना चाहिए।
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