कार्यकर्ताओं के निराशा के कारण मतदान का प्रतिशत घटा:- रत्नाकर

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कार्यकर्ताओं के निराशा के कारण मतदान का प्रतिशत घटा:- रत्नाकर


-वर्तमान राजनीतिक दौर में पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं के स्थान पर बिचौलिया महत्वपूर्ण

नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) संपन्न लोकसभा चुनाव में 57% से भी अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया । इस पर चिंता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सह पत्रकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि बिहार के चार लोकसभा क्षेत्र मगध प्रमंडल के गया, नवादा, औरंगाबाद एवं भागलपुर प्रमंडल के जमुई में संपन्न लोकसभा चुनाव में 50% से कम मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है या लोकतंत्र के महापर्व में भाग लिया है। लेकिन 50% से अधिक लोगों ने मतदान नहीं किया। यह स्थिति चिंताजनक है। 

शिक्षा का विस्तार हुआ है। सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त लोगों की संख्या बढ़ी है तो फिर लोकतंत्र के महापर्व के प्रति लोगों में घटती आस्था क्या बयां कर रही है ? सभी जानते हैं कि देश की 80 करोड लोगों को मुफ्त अनाज प्रदान किया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसानों को साल में सरकार द्वारा छह  हजार रुपया प्रदान किया जा रहा है। तो बड़ी संख्या में इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ प्राप्त हो रहा है। सभी योजना व्यक्तिगत लाभ की योजना है। इसके अलावा नल जल योजना एवं बिहार में खासकर छात्राओं को 25 और 50000 का प्रोत्साहन राशि दिए जाने के बाद भी लोकतंत्र के महापर्व के प्रति नागरिकों के उपेक्षा के भाव के कारण क्या है? इसकी पड़ताल जरूरी है। 

इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार के चारों क्षेत्र में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के भाव स्पष्ट हुआ कि वह अपने-अपने दल और अपने-अपने नेताओं से प्रसन्न नहीं है। हमने वह दिन भी देखा जब कार्यकर्ता अपने नेता दल और नीति के प्रति वफादार रहकर भूखे प्यासे गर्मी और जाड़े के मौसम में लगातार सक्रिय रहकर काम करते थे। बिना किसी लाभ और लोभ के हर ढंग के कार्यकर्ता अपने दल के लिए जोरदार प्रयास करते थे, लेकिन अब कार्यकर्ता नामक प्राणी विलुप्त हो गई है। 

बिहार में जो 33 साल से पिछड़ा अगड़ा की बात बोलकर राजनीति कर रहे हैं उन  सभी दलों में कार्यकर्ता की संख्या अधिक विलुप्त हुई है। सभी दलों में बिचौलिया नामक नया वर्ग सक्रिय है और लाइसेंस, ठेका, सरकारी धन और व्यवस्था को हड़पने वाले वर्ग ने एक तरफ से लोकतंत्र की आत्मा को घायल कर दिया है। लाभुक वर्ग की बड़ी आबादी पलायन कर चुकी है तो मध्यम वर्ग, छोटे किसान ,छोटे व्यापारी वर्ग के लोगों को वर्तमान की नेतृत्व के प्रति आस्था का अभाव है। इन कर्मो के कारण जनता मतदान के महत्व को अस्वीकार कर रही है। 

राजनीति में व्यक्तिवाद, परिवारवाद के शक्ति संपन्न होने और चुनाव महंगा होते जाने के कारण जनमानस में यह भाव आया है कि चुनाव गांठ के पके लोगों का खेल रह गया। साधारण और सामान्य व्यक्ति पार्टी के प्रति समर्पित रहकर भी कुछ नहीं प्राप्त कर सकता है। इसलिए वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से कार्यकर्ताओं का मोह भंग हुआ है। बिहार में संपन गया ,नवादा ,औरंगाबाद और जमुई क्षेत्र में जिन उम्मीदवारों के जीतने हारने की बात है उनमें अधिकांश उम्मीदवार मात्र 15 साल के अंदर करोड़पति हुए हैं। 

चर्चा तो यह भी है कि कुछ उम्मीदवारों ने करोड़ों का चंदा देकर टिकट प्राप्त किया है। इस ढंग की चर्चा के कारण कार्यकर्ताओं की निराशा और बढ़ रही है। 

पगडंडी के आसपास में अलख जगाने वाले पुरुषार्थी कार्यकर्ताओं के घर बैठने की स्थिति में लोकतंत्र के कमजोर पड़ने के संकेत हैं।

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