मंगलवार यानी 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में वोटिंग और वीवीपैट पर्चियों से मिलान की मांग वाली याचिका पर लंबी बहस हुई. इस दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने ईवीएम की आलोचना और मतपत्रों को वापस लाने का आह्वान करने के कदम पर नाखुशी जताई.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ज्यादातर वोटर्स अब ईवीएम पर भरोसा नहीं करते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि कैसे ज्यादातर यूरोपीय देशों में ईवीएम के माध्यम से मतदान कराने वाले मतदाता अब वापस कागज के मतपत्रों पर लौट आए हैं.
भूषण के इस तर्क के जवाब में जस्टिस संजीव खन्ना ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं और हर किसी को पता है कि जब बैलेट पेपर्स से वोटिंग होती थी तो किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था.
भारत में पिछले दो दशकों से ईवीएम मशीन यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन चुनावी प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग बन गया है. पिछले दो दशक से भारत के हर संसदीय और विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है.
ईवीएम को अपने 45 साल के इतिहास में कई बार आलोचनाओं और आरोपों का सामना भी करना पड़ा है, लेकिन इलेक्शन कमीशन के मुताबिक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में ईवीएम काफी अहम भूमिका निभाती रही है.
क्या होती है ईवीएम मशीन
ईवीएम का पूरा नाम है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन. यह एक मशीन है जिसकी मदद से चुनाव के दौरान मतदाताओं के मत को दर्ज किया जाता है और ये मशीन उन वोटों की गिनती भी करती है. ईवीएम साधारण बैटरी से चलती है.
इसे दो हिस्सों में बनाया जाता है. पहला हिस्सा है कंट्रोल यूनिट (सीयू), दूसरा हिस्सा है बैलेटिंग यूनिट (बीयू). पहला और दूसरा हिस्सा पांच मीटर लंबी एक तार से जुड़ी होता हैं.
ईवीएम मशीन किसी भी तरह के किसी नेटवर्क से जुड़ा नहीं होता है. चुनाव आयोग की मानें तो यह मशीन किसी तरह के कंप्यूटर से कंट्रोल किया जाता हैं.
यहां तक की इसके डेटा के लिए फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डिकोडर भी नहीं होता है. मशीन को मतदान के बाद सील बंद कर दिया जाता है और केवल रिजल्ट वाले दिन ही खोला जाता है.
किसके पास होती है कंट्रोल और बैलेटिंग यूनिट
कंट्रोल यूनिट रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है और बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कंपार्टमेंट में रखी जाती है. जहां पर आकर मतदाता अपने पसंदीदा पार्टी या उम्मीदवार को वोट करते हैं.
इस मशीन के आने से पहले कैसे होती थी वोटिंग
ईवीएम का भारत में सबसे पहली बार साल 1982 में इस्तेमाल किया गया था. इसके आने से पहले बैलट पेपर यानी मतपत्र से वोटिंग कराई जाती थी. उस वक्त मतदान के दौरान मतदाताओं को मतपत्र दिया जाता था और वोटर्स मतदान के कंपार्टमेंट में जाकर जिस भी उम्मीदवार को चाहें उसपर मुहर लगा देते थे. इसके बाद मुहर लगे उस मतपत्र को मतपेटी में डाल दिया जाता था.
हालांकि ईवीएम की व्यवस्था काफी अलग है इसमें किसी भी कागज और मुहर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
ईवीएम मशीन से वोटिंग के दौरान मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर ‘बैलट’ बटन दबाते हैं, जिसके बाद मतदाता बैलेटिंग यूनिट पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के आगे लगा 'नीला बटन' दबाते हैं और अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देते हैं.
यह वोट कंट्रोल यूनिट में दर्ज किया जाता है और कंट्रोल यूनिट एक बार में 2000 वोट दर्ज कर सकती है. वोटिंग खत्म होने के बाद वोटों की गिनती भी इसी यूनिट से की जाती है.
एक बैलेटिंग यूनिट में किया जा सकता है 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज
इवीएम मशीन के एक बैलेटिंग यूनिट में कुल 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं. ऐसे में अगर कैंडिडेट 16 से ज्यादा हों तो ऐसी स्थिति में बैलेटिंग यूनिट्स को कंट्रोल यूनिट से जोड़ा जा सकता है.
चुनाव आयोग के अनुसार, एक ईवीएम मशीन में एक साथ 24 बैलेटिंग यूनिट जोड़ी जा सकती हैं, जिससे नोटा सहित लगभग 384 उम्मीदवारों के लिए मतदान करवाया जा सकता है.
चुनाव आयोग के अनुसार ईवीएम मशीन काफी उपयोगी है और यह पेपर बैलट से वोटिंग की तुलना में ज्यादा सटीक होती है. इसका कारण ये है कि मशीन से वोटिंग कराए जाने के बाद इससे गलत या अस्पष्ट वोट डालने की संभावना खत्म हो जाती है.
ईवीएम मशीन से वोटर्स को मतदान देने में भी काफी आसानी होती है और इलेक्शन कमीशन को वोटों की गिनती करने में भी.
किसने तैयार किया ईवीएम मशीन का डिजाइन
भारत में इस मशीन को दो सरकारी कंपनियों द्वारा तैयार किया गया है. ये कंपनियां हैं भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), जो रक्षा मंत्रालय के तहत आती है और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) जो डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के तहत आती है.
1977 में सबसे पहले आया था इस मशीन के इस्तेमाल का ख्याल
चुनाव आयोग के अनुसार, इस देश में वोटिंग के लिए मशीन का इस्तेमाल किए जाने का विचार सबसे पहले साल 1977 में आया था. उस वक्त के मुख्य चुनाव आयुक्त एस.एल. शकधर ने वोटिंग मशीन के इस्तेमाल की बात की थी.
उस समय इस मशीन को डिजाइन और विकसित करने की जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद को दी गई थी.
साल 1979 में पहली बार भारत में ईवीएम का एक मॉडल विकसित किया गया, जिसे चुनाव आयोग के सामने 6 अगस्त 1980 में प्रदर्शित किया. बाद में बेंगलुरु की बीईएल कंपनी को भी इसे विकसित करने के लिए चुना गया.
क्या ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हो सकती है?
साल 2010 के मई महीने में अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके पास ऐसी तकनीक है जिसके इस्तेमाल से वह भारत के ईवीएम को हैक कर सकते हैं.
शोधकर्ताओं का दावा किया था कि ईवीएम मशीन के परिणाम को मोबाइल से टेक्स्ट मैसेज के बदला जा सकता है. हालांकि इस बारे में पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति की राय बिल्कुल अलग है.
उन्होंने बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि, "जिस डिजाइन के मशीन का भारत में इस्तेमाल किया जाता है, वो काफी मजबूत मशीनें हैं और मुझे नहीं लगता कि इसे हैक किया जाना इतना आसान है."
उन्होंने आगे कहा, "ऐसा हो सकता है कि पोलिंग बूथ पर मशीन चलाने वाले अधिकारी इसे ठीक से न चला पाएं लेकिन वोटिंग से पहले इन मशीनों को काफी कड़ी जांच से गुजरना पड़ता है."
कृष्णमूर्ति ने ये भी कहा, " ईवीएम पर भले ही पहले भी हैक होने के आरोप लग चुके हैं. लेकिन कोर्ट में अब भी ये आरोप साबित नहीं हुए हैं और सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को खारिज कर दिया था."
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