स्कूल में खाना बनाने वाली रसोइया का बेटा ने किया कमाल

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स्कूल में खाना बनाने वाली रसोइया का बेटा ने किया कमाल


राहुल 500 में 474 यानी 95% अंक हासिल किया

बोर्ड ऑफिस में एक्सपर्ट कमेटी ने बुलाकर सवाल पूछा तो पांच विषय मिला भेरी गुड

राहुल सिविल सर्विसेज की तैयारी करना चाहता है,मदद की दरकार

राहुल के पिता पहले ही स्वर्गवास कर चुके 

मां के भरोसे पालन पोषण की जिम्मेवारी

शिक्षाविद सह समाजसेवी सुरेश सिंह ने सम्मानित कर पांच हजार एक सौ रुपया का सहयोग राशि दिया 

राहुल को सम्मानित करते शिक्षाविद सह समाजसेवी सुरेश सिंह व मां ममता देवी

विप्र।संवाददाता

बिहारशरीफ (नालंदा) स्कूल में खाना बनाने वाली रसोइया का बेटा राहुल कुमार मैट्रिक की परीक्षा में 500 में 474 अंक हासिल किया। लगभग 95% अंक लाकर दिखा दिया कि गरीबी शिक्षा में रूकावट नहीं ला सकता है।राहुल की प्रतिभा सुनकर स्कूल में खाना बनाकर बेटा को पढ़ाने वाली मां फूले नहीं समा रही है। राहुल के पिता पहले ही स्वर्गवास कर चुके हैं। राहुल की मां मसोमत ममता देवी ने बताया कि पहले इसके पिता दुनिया छोड़ कर चले गए। तबसे स्कूल में खाना बनाकर तंगी हालत में बेटा को पढ़ा रही हूं। रहने को अपना घर नहीं है। बावजूद बेटा पर कुछ करने का पुरा विश्वास है। इसलिए की बचपन से ही पढ़ने में मेधावी है। शिक्षाविद सह समाजसेवी सुरेश सिंह ने राहुल को सम्मानित कर आगे की पढ़ाई के लिए सहयोग राशि दिया। राहुल हरनौत हाई स्कूल का छात्र है। चंडी रोड के द स्टार क्लासेज में कोचिंग पढ़ता था। गांव के जिस विद्यालय में मां खाना बनती है। उसी विद्यालय में आठवीं तक पढ़ाई किया था। उसके बाद हरनौत हाई स्कूल में नामांकन करवाया था। राहुल ने बताया कि बिहार बोर्ड द्वारा बुलावा आया था। वहां विभिन्न विषयों के एक्सपर्ट ने सवाल जवाब किया। पांच विषय में भेड़ी गुड एवं एक विषय में गुड मिला था। आर्थिक स्थिति को देखते हुए मैं बहुत बड़ा सपना नहीं देख सकता। सिविल सर्विसेज की तैयारी कर देश की सेवा करने की तमन्ना है।

राहुल को सम्मानित किया गया

शिक्षाविद सह समाजसेवी उप मुख्य पार्षद के प्रतिनिधि सुरेश सिंह को सफलता की खबर मिली, तो उन्होंने गांव पहुंच कर सम्मानित किया। माला पहनकर मिठाई खिलाते हुए हौसला बढ़ाया। डिक्शनरी, डायरी, कलाम एवं शर्ट पैंट का कपड़ा के साथ आगे की पढ़ाई के पांच हजार एक सौ रुपया सहायता राशि दिया। कहा कि प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं रहता है। विद्या को पैसा से कोई वास्ता नहीं है। विद्यार्थी में पढ़ने की ललक होनी चाहिए। मैनें भी तंगी हालत में परिवार के यहां रहकर शिक्षा ग्रहण किया था। आगे की पढ़ाई के लिए भी यथा संभव सहयोग करेंगे।

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