मेरी याददाश्त में देश में ये पहला और शायद आखरी आम चुनाव है जो कि जनता के मुद्दों से दूर भागता नजर आ रहा है। देश के मतदाताओं से सीधे जुड़े मुद्दों पर बातचीत करने के बजाय ऐसे मुद्दों पर विमर्श को केंद्रित करने की कोशिश की जा रही है जो न केवल अप्रासंगिक हैं बल्कि उनका आज की तारीख में देश और देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है। लोकतंत्र में जनता को भटकाना यानि लोकतंत्र को भटकाना एक गंभीर अपराध है ,लेकिन लोग हैं कि ये अपराध सीना ठोंक कर कर रहे हैं।
इस समय देश में अठारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव की प्रक्रिया जारी है। इनमें से कम से कम 14 आम चुनावों का मैं चश्मदीद हूँ और कम से कम एक दर्जन आम चुनावों का कव्हरेज एक पत्रकार के नाते मैंने किया है। लेकिन ये पहला मौक़ा है जब आम चुनावों को मुद्दों से भटकाने की एक सुनियोजित कोशिश की जा रही है। दुर्भाग्य ये है कि ये कोशिश वे राजनीतिक दल कर रहे हैं जो न सिर्फ जिम्मेदार माने जाते हैं बल्कि पिछले एक दशक से भारत के भाग्यविधाता भी बने हुए हैं। विपक्ष जैसे-तैसे आम चुनावों को मौजूदा मुद्दों पर लेकर आता है सत्ता पक्ष झटके में अतीत की एक कब्र खोदकर उसमें से अपने मतलब का एक कंकाल निकाल लाता है ,वो भी आधा-अधूरा और जनता को मुद्दों से भटका देता है।
तीसरी बार सत्ता में आने के लिए कटिबद्ध भाजपा के तरकस से लगभग सभी तीर निकल चुके है। राम मंदिर बन गया,जम्मू-कश्मीर को खंड-खंड कर वहां से अनुच्छेद 370 का विलोप हो गया, तीन तलाक पर क़ानून बन गय। नारी शक्ति की वंदना हो गयी। समान नागरिकता क़ानून का शिगूफा भी छोड़ा जा चुका है और अब जब कुछ नहीं बचा तो भाजपा के विद्वान रणनीतिकार अतीत की कब्र खोदकर श्रीलंका और भारत के बीच 1974 में हुए एक सीमा समझौते को खोज लाये। जिसे पिछले एक दशक से न भाजपा नेता जानते थे और न देश की जनता। अब भाजपा कच्चादीव विवाद खड़ा कर दक्षिण के तमिल मतदाताओं की भावनाओं को कुरेद कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है।
भाजपा के नेतृत्व को भलीभांति पता है कि वो अपनी पार्टी की सरकार की कथित उपलब्धियों के बूते से मौजूदा आम चुनाव नहीं जीत सकती। भाजपा ने इस बार गलती से तीसरी बार सत्ता में आने के लिए न सिर्फ चुनाव जीतने का बल्कि अपने लिए अखंड शक्ति हासिल करने के मकसद से 400 पार का नारा और दे दिया है। हकीकत ये है कि भाजपा की नाव मझदार में है । उसके लिए पिछले आम चुनाव में मिली कामयाबी के कीर्तिमान को ही बनाये रखना कठिन हो रहा है। चार सौ पार की बात तो दूर की कौड़ी है।
आप गौर कीजिये कि जब से कांग्रेस का चुनाव घोषणा पात्र न्याय पत्र के नाम से सामने आया है तभी से भाजपा के होश उड़ते दिखाई दे रहे है। भाजपा के पहले दर्जे के नेताओं ने कनग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र की तुलना मुस्लिम लीग से कर दी है। दुनिया जानती है कि इस देश में अब मुस्लिम लीग का कोई वजूद नहीं है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने ये टिप्पणी खीजकर की है। इससे बहुसंख्यक खुश नहीं हुए और अल्पसंख्यक दुखी जरूर हो गए। भाजपा यही करना चाहती है। अल्पसंख्यकों को दुखी करना ही भाजपा का असल उद्देश्य है ,क्योंकि भाजपा को पता है कि भाजपा लाख कारीगरी कर ले देश का अल्पसंख्यक उसके ऊपर भरोसा नहीं कर सकता।
दरअसल अठारहवीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनावों में मुद्दा भ्र्ष्टाचार होना था । भ्र्ष्टाचार को संरक्षण देने वाले दल होना चाहिए था । इलेक्टोरल बांड से जुटाया जाने वाला धन होना चाहिए था। सरकार अपनी उपलब्धियों पर और विपक्ष सरकार की असफलताओं पर चुनाव लड़ता तो वास्तविक चुनाव होता। दुर्भाग्य ये है कि ये सब सत्तापक्ष होने नहीं देना चाहता। सत्तापक्ष मौजूदा विपक्ष को तो छोड़िये पचास साल पहले की सरकारों के फैसलों पर सवाल खड़े कर जनता को भ्रमित करना चाहता है। ऐसा किसी देश में नहीं होता। भारत में भी ऐसा कभी नहीं हुआ । न आपातकाल के बाद बनी पहली गठबंधन की सरकार ने ऐसा किया और न भाजपा के नेतृत्व में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने ये अपराध किया। अटल जी ने अतीत की कब्रें नहीं खोदीं । वे अपनी सरकार की उपलब्धियों पार चुनाव लड़े। साइनिंग इंडिया उनका नारा था।
आज की भाजपा सरकार अटल जी की सरकार का हश्र देख चुकी है ,इसलिए अपनी उपलब्धियों के बूते चुनाव न लड़कर अप्रासंगिक ,निराधार ,और निरर्थक मुद्दों को सामने रखकर चुनाव लड़ रही है। पिछले एक दशक में अपने लगभग सभी पड़ौसियों से रिश्ते बिगाड़ चुकी भाजपा सरकार के सामने अब गड़े मुर्दे उखाड़ने के अलावा जनता का समाना करने का कोई दूसरा विकल्प बचा ही नहीं है। भाजपा ने पिछले 10 साल में केवल और केवल चुनाव लड़ा है । देश को मजबूत करने के बजाय पार्टी को मजबूत किया है। भ्र्ष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का भाजपा का नारा महज एक धोखा साबित हुया है ,क्योंकि भाजपा ने हाल के वर्षों में कांग्रेस के जमाने के सबसे भ्र्ष्टतम नेताओं को अपने साथ मिलाकर उन्हें मंत्रिपद और राज्य सभा भेजा है उसे पूरे देश ने देखा है।
देश की कमान कौन सम्हाले और कौन नहीं ,इससे हम जैसे लोगों पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन आम जनता और देश के भविष्य पर इसका दूरगामी प्रभाव अवश्य पडेगा। मुमकिन है कि देश सचमुच विश्व गुरु बन जाये और मुमकिन है कि सचमुच भारत की और दुर्दशा हो जाय। भारत की जनता को 1975 के आपातकाल से भी बुरे दिन देखना पड़ जाएँ , वो भी बिना आपताकाल की औपचारिक घोषणा किये बिना।
भारत की जनता ने 2014 में बुरे दिनों से बाहर निकलने और अच्छे दिन लाने के लिए भाजपा को वोट दिया था ,लेकिन भाजपा ने जो वादा किया था ,उसे निभाया नहीं ,उलटे जनता को फुसलाकर 2019 में भी उसका बहुमूल्य वोट हासिल कर लिया। लेकिन अब जनता दूध से क्या पानी तक से जली बैठी है। अब जनता सब कुछ फूंक-फूंककर देखेगी। देश का भविष्य देश की जनता के हाथों में है । देश की जनता को ही 1977 की तरह सिंहासन खाली करो कि जनता आती है का नारा देकर आगे बढ़ना होगा अन्यथा जनता सिंघासन तक नहीं पहुंचेगी कांग्रेस मिश्रित भाजपा जरूर पहुँच जाएगी।मतदान अवश्य कीजिये और अपना तथा अपने देश का ख्याल रखिये।
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