-सौन्दर्यीकरण के नामपर बाहर से आने वाले सैलानियों को किया जा रहा परेशान
-नाजायज नहीं देने वालों पर चटकायी जा रही लाठियां
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) जिले का कश्मीर माना जाने वाला ऐतिहासिक शीतल जलप्रपात ककोलत वन कर्मियों के लिए कामधेनु गाय बना हुआ है। सौन्दर्यीकरण के नाम पर पिछले दो वर्षों से सैलानियों के लिये अघोषित रुप से बंद है। वैसे मानें तो कोरोना काल से बंद पड़ा है। ऐसे में भीषण तपीश के बावजूद सैलानियों को शीतल जलप्रपात में तपीश बुझाने से महरुम होना पड़ रहा है।
ऐसी भी बात नहीं है कि अघोषित रुप से बंद रहने के बावजूद स्थानीय लोगों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। स्थानीय लोगों को नौ बजे सुबह तक स्नान करने की छूट है। लेकिन अगर कोई स्कूली छात्र- छात्राओं का वाहन या फिर सपरिवार बाहर से आ जाय तो वन कर्मियों का तेवर देखते ही बनता है। वे सैलानियों पर लाठियां चटकाने तक से नहीं चूकते।
स्थानीय लोगों के अनुसार बाहर से आने वाले सैलानियों में से कुछ को दस बजे सुबह तक नाजायज राशि की वसूली कर प्रवेश दी जाती है, लेकिन अधिकांश को वापस किये जाने से निराश होकर वापस लौटने को विवश होना पड़ रहा है। ऐसे में वे स्नान से बंचित तो हो ही रहे हैं आर्थिक व मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
कुछ इसी प्रकार का मामला रविवार को देखा गया। सउदी अरब व पटना से कुछ लोग जलप्रपात का अवलोकन करने आये। आने वाले मालदार थे सो वन कर्मियों ने जाने से मना कर दिया। मामला राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य अफरोजा खातुन तक पहुंचा। उन्होंने तत्काल डीएफओ, रेंजर से लेकर रजौली एसडीएम को फोन लगाया लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। विवश होकर उन्होंने डीएम से बात कर पूरे मामले से अवगत कराया। सबसे बड़ा सवाल यह कि अगर ककोलत में प्रवेश निषेध है तो सूचना क्यों नहीं? फिर स्थानीय लोगों पर नियमों से छूट क्यों?
उन्होंने समाहर्ता से वन विभाग की दोहरी नीति पर रोक लगाने तथा प्रतिबंध से संबंधित बोर्ड फतेहपुर मोड़ पर लगाने का अनुरोध किया है। ऐसा होने से ककोलत पहुंचने के पूर्व ही बाहर से आने वाले सैलानी लौट सकेंगे।
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