-12 अप्रैल से छठ महापर्व का नहाय- खाय से शुभारंभ
:-रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया)
वैदिक साहित्य में सूर्य सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव हैं,अतः उनका प्राकृतिक व्यक्तित्व स्पष्ट निर्देश और तेजस्वी का है ।।सूर्य दीर्घदर्शी हैं,दिव्य प्रकाश हैं। अंधकार को दूर भगाने की शक्ति के कारण भूत- चुड़ैल उनसे दूर भागते हैं। सूर्यदेव भौतिक सूर्य के प्रतिनिधि है तो सविता उनकी प्रेरक शक्ति हैं।सविता स्वर्णिम हैं, नेत्र,हाथ, जिह्वा और भुजाएं सभी स्वर्णिम हैं। सविता भगवान सूर्य का एक ही नाम है।
संस्कृत साहित्य एवं पुराणों में सूर्य का 109 नाम गिनाया गया है।यथा,आदित्य, सविता नाम से अधिक छठ के गीत गाए जाते हैं। सविता नाम सूर्य की एक विशेष अवस्था का नाम है,वह अवस्था प्रारंभिक या उदीयमान या उदय कालीन की है। यह रूप मनोहर आकर्षक एवं दर्शनीय होता है। उदय कालीन अवस्था में सविता सूर्य का रूप देखते ही बनता है। सविता की यह स्थिति लगभग आधे घंटे तक रहती है।
व्रत धारी सविता की अर्चना और वंदना करते हैं। वैदिक साहित्य के अनुसार सविता के इस मनभावन रूप के दर्शन स्वप्रकाश, रोग मुक्ति के साथ-साथ पुष्टि कारक और स्वास्थ्यवर्धक है। खगोलविदों के अनुसार सूर्य हम से 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका व्यास 1312000 किलोमीटर और इसका कुल भार पृथ्वी से 330000 गुना अधिक है।यदि हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों को जोड़ दिया जाए तो भी सूर्य 1000 गुना अधिक रहेगा।
सूर्य में गैसों का भंडार है और उसकी आकृति एकदम गोल है। गैसों की परत लगभग 5 से 10000 मील तक मोटी है। उसके नीचे की परत के बारे में अनुमान है कि काफी ठोस होगी। सूर्य गैसों का भंडार निरंतर चलता रहता है सूर्य की ज्वाला की लपटें लाखों मिल तक फैली रहती है। सूर्य प्रतिक्षण अपनी 56 करोड़ 40 लाख टन हाइड्रोजन को जलाकर 56 करोड़ टन हिलयम में परिवर्तित करता रहता है और शेष 4000000 टन हाइड्रोजन नष्ट हो जाती है। अनुमानतः यह प्रक्रिया पिछले 5 वर्षों से चल रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हाइड्रोजन के नष्ट होने और अपनी शक्ति को वितरित करने की अगर गति अगले 950 अरब वर्षों तक और चलती रहे तो सूर्य अपनी शक्ति का 1% से भी कम भाग व्यय कर पाएगा। इस वितरण से सूर्य की प्रचंड ऊर्जा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। अगर हमारी पृथ्वी कभी सूर्य की चपेट में आ जाए तो उसी प्रकार से जलकर नष्ट हो जाएगी जैसे किसी धधकती हुई भट्टी में घी का एक बूंद। प्राचीन काल से मगध वासी सविता, छठी मैया के नाम से सुंदर शरीर की कामना के साथ चैत और कार्तिक महीने में आराधना करते आ रहे हैं।सूर्य के 6 शक्ति जिसके कारण साल में छह ऋतुएं होती हैं, की पूजा घी,दीप और अन्न के प्रसाद, फल फूल से भरी डाली भगवान को निवेदित करते हैं। षष्ठी व्रत या छठ पर्व में किसी नदी तालाब पर आराधना की जाती है।मगध के लोकपर्व का कालान्तर में विकास एवं विस्तार हुआ है।अब वाराणसी से अजगैंवीनाथ मंदिर तक गंगा किनारे बिना किसी जातिभेद के और बिना किसी पुरोहित के भक्त सीधे भगवान सूर्य को प्रथम दिन अस्ताचलगामी सूर्य और दूसरे दिन उगते सूर्य के सामने फल फूल और प्रसाद की डाली निवेदित करते हैं।
छठ मैया की आराधना में गाए गए लोकगीत में लोगों की कामना स्पष्ट रूप से सामने आती है छठ व्रती के साथ औरतें इस प्रकार गाती हैं:-
रुनकी झुंकी बेटी मांगी,वेद पढ़न को दामाद, छठी मैया प्रातः दर्शन दे हो
प्रातः दर्शन देने की कामना के साथ ही बेटे के अलावा बेटी छठी मैया से व्रतधारी मांगते हैं। लोक भाषा के रूनकी झुमकी का अर्थ है कभी रूठने वाली और कभी मान जाने वाली बेटी चाहती है। लेकिन दामाद हर हालत में पढ़ने वाला ही मांगते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बिहार खासकर प्राचीन मगध के नारियों के मन में वेद और वैदिक साहित्य के प्रति गहरा अनुराग कायम है।
मगध क्षेत्र के बड़गांव, देव, उलार ,औंगारी,पंडारक और बोधगया में प्राचीन सूर्य मंदिर होने का पुरातात्विक साक्ष्य है। बड़गांव प्राचीन नालंदा खंडहर के क्षेत्र के पास अवस्थित है।यहां एक प्राचीन सूर्य मंदिर और तालाब है।इस स्थल पर चैत और कार्तिक महीने में प्रत्येक वर्ष दो बार 500000 से 1000000 की संख्या में भक्त पधारते हैं।
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब निकुल ने 6 सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था,जिसमें मुल्तान का सूर्य मंदिर और एक बड़गांव का सूर्य मंदिर महत्वपूर्ण है।शाम्ब के संबंध में भविष्य पुराण, श्रीमद्भभागवत पुराण और ब्रह्मांड होने के बाद शाम्ब रचित शाम्ब पुराण में अंकित है।
जिले में शुक्रवार 12 अप्रैल से नहाय- खाय के साथ चतुर्दिवसीय महापर्व छठ का आगाज होगा। इसकी तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया है। छठ व्रतियों की आगवानी के लिए ठाट- बाट के साथ छठ घाट को तैयार किया गया है।
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