अपराध की दुनिया का कैसे 'मुख्तार' बना यूपी का बाहुबली?

👉

अपराध की दुनिया का कैसे 'मुख्तार' बना यूपी का बाहुबली?

 


उत्तर प्रदेश का कुख्यात माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की गुरुवार (28 मार्च) की रात बांदा मेडिकल कॉलेज में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो चुकी है. गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के खिलाफ 65 से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

देश में दिल दहला देने वाले अपराधों का दूसरा नाम बन चुके मुख्तार का नाम जब उसके माता-पिता ने रखा था तब शायद ही उन्होंने सोचा था कि नाम के जैसा ही वह अपराध की दुनिया का भी "मुख्तार" बन जाएगा. चलिए हम आपको बताते हैं उसके नाम के साथ कैसे उसके कुख्यात अपराधों का सफर जुड़ा रहा था.

क्या होता है मुख्तार का मतलब?

दरअसल, मुख्तार उर्दू शब्द है जिसका मतलब होता है "जिसे अधिकार प्राप्त हो". और सरल भाषा में कहें तो "जो अधिकृत हो". बादशाहत के जमाने में लगान वसूली या क्षेत्र में किसी भी गतिविधि पर फैसला लेने के लिए जिन लोगों को अधिकृत किया जाता था उन्हें मुख्तार कहा जाता था. 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के यूसुफपुर में जब अंसारी परिवार में बच्चे का जन्म हुआ तो मां-बाप ने उसका नाम बड़े शौक से "मुख्तार" रखा था.

जीवन के महज 18 बसंत देखने के बाद मुख्तार अंसारी 80 के दशक में अपराध की दुनिया में पहला कदम रखता है. उसके बाद अपराध की दुनिया बनाता है, बसाता है और कई खौफनाक हत्याओं के जरिए उसे आबाद रखता है. चार दशकों तक अपने खौफ के जरिए क्राइम वर्ल्ड का बेताज बादशाह रहा अंसारी 1996 में पहली बार विधायक बना और उसके बाद राजनीति के अपराधीकरण का "मुख्तार" बनकर जीता रहा था. जैसे वह ऐसा ही करने के लिए ही पैदा हुआ था.

मुख्तार के दादा थे स्वतंत्रता सेनानी,  नाना देश के लिए शहीद 

मुख्तार अंसारी के फैमिली हिस्ट्री की बात करें तो उसका परिवार एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार हुआ करता था. दादा मुख्तार अहमद अंसारी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था. 1926-27 के वक्त वो कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने 1947 में देश के लिए शहादत दी और मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजे गए. मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह का गाजीपुर में खानदानी रुतबा था.

अपराध की सीढ़ियां चढ़ राजनीति में एंट्री

मुख्तार ‌अंसारी देश के उन नेताओं में शामिल रहा है जो अपराध की सीढ़ियां चढ़कर राजनीति में रसूख कायम करने वाले रहे हैं. 80 के दशक में अपने अपराधिक गुरु साधु और मकनू सिंह के कहने पर रंजीत सिंह की फिल्मी स्टाइल में दो दीवारों की सुराख से गोली मारकर हत्या के बाद मुख्तार ने कोयला खनन, रेलवे निर्माण और अन्य क्षेत्रों से जुड़े कांट्रेक्ट पर नियंत्रण हासिल कर लिया था. उसके खनक की तूती बोलती थी जिसे राजनीतिक दलों ने जन आधार हासिल करने का जरिया बना लिया.

1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधायक बना. उसरे बाद वह बीजेपी को छोड़कर यूपी की हर बड़ी पार्टी से जुड़ा. 24 साल तक यूपी की विधानसभा तक पहुंचा. पहली बार 1996 में BSP के टिकट पर चुनाव जीता. इसके बाद अंसारी ने मऊ सीट से 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी जीत हासिल की. आखिरी 3 बार के चुनाव जेल में रहते हुए जीते.

कृष्णानंद राय हत्याकांड ने पूरे देश को हिला दिया था

साल 2002 की एक घटना ने मुख्तार अंसारी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी. इसी साल बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली. यह बात मुख्तार को इतनी नागवार गुजरी कि उसने राय की हत्या करवा दी. 29 नवंबर 2005 को एक कार्यक्रम से लौटते वक्त कृष्णानंद राय पर जानलेवा हमला हुआ.

यह वारदात इतनी खौफनाक थी कि AK-47 राइफल से उनके शरीर पर 500 गोलियां दागी गईं. इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया था. राय समेत मौके पर सात लोगों की मौत हो गई थी.

Post a Comment

Previous Post Next Post